'मंगल' मस्ती में चूर चललबलिया के बांका बीर चललआज़ादी की लड़ाई में अविभाज्य हिंदुस्तान के हर जिले, गाँव, कस्बे ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। लेकिन ये सौभाग्य एक ही जिले के हाथ आया कि अंग्रेजों और उस के पिठ्ठू हिन्दुस्तानी राजाओं ने उस जिले का नाम ही "बागी" रख दिया। ब्रितानी हुकूमत को सीधी चुनौती देने वाले उसी बाग़ी बलिया के शेर, प्रथम स्वातंत्र्य समर के प्रथम हुतात्मा, वीर योद्धा मंगल पांडेय जी को उनके जन्मदिन पर कृतज्ञ राष्ट्र का स्मरण और वंदन। 🇮🇳 🙏🏻💖

✍भारतीय इतिहास में मंगल पांडे ही वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने क्रान्ति की ऐसी चिनगारी जलाई थी जिसमें उन्होंने न केवल ब्रिटिशों का विरोध किया था बल्कि देशहित और धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन ही न्योछावर कर दिया था। वही चिनगारी बढ़ते बढ़ते 1857 का स्वातंत्र्य संग्राम बन गई थी। 

🚩1857 की स्वाधीनता संग्राम के नायक मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को पिता दिवाकर पांडे और माता अभय रानी के यहां बलिया जिले के नगवा गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही शरीर से काफी हट्टे कट्टे थे। उन्हें देख कर सेना के एक अंग्रेज अफसर ने सेना में भर्ती होने की सलाह दी थी। 1849 में 22 साल की उम्र में मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की पैदल सेना में शामिल हुए थे। इस्ट इंडिया कंपनी की रियासत व राज हड़प करने की वृत्ति और फिर ईसाई मिशनरी द्वारा धर्मान्तरण करने की हीन वृत्ति ने लोगों के मन में अंग्रेजी हकूमत के लिए पहले ही नफरत पैदा कर दी थी। समय बीतते अंग्रेजों की धर्म और देशहित विरोधी नीतियों तथा भारतीयों के प्रति भेदभाव व अन्याय के चलते भारतीय सैनिकों में भी उनके प्रति आक्रोश बढ़ रहा था। पीठ के पीछे अंग्रेजों की बुराई तो हर कोई किया करता था पर सामने आकर कुछ करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता था। ऐसे माहौल में एक बदलाव शुरू होना था। सन 1857 के मार्च महीने में मंगल पांडेने एक ऐसी क्रान्ति को जन्म दिया जो जंगल में आग की तरह संपूर्ण उत्तर भारत और देश के दूसरे भागों में स्वतंत्रता संग्राम के रूप में फैल गयी।  

⚔1857 कि साल में सेना में नयी तरह के कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ था जिनको बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पडता था जिसमें गाय और सुअर की चर्बी का उपयोग किया गया था। यह बात जब सैनिकों को पता चली तब उनके मन में यह बात घर कर गई की अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट करवाना चाहते हैं। वे आग बबूला हो गए। ऐसे में मंगल पांडे ने सबका साथ लेकर इसका इस्तेमाल करने से साफ साफ मना कर दिया। साथियों को देश और धर्म के प्रति अपना कर्तव्य याद दिलाने की कोशिश कर रहे मंगल पांडे की ये हरकतें अंग्रेज अफसर को  पसंद नहीं आयी। उसने मंगल पांडे की वर्दी (ड्रेस) उतारने और हथियार छीनने के आदेश दिए। तब मंगल पांडे ने मेजर हुस्टन को मौत के घाट उतार दिया। पकड़ने आए दूसरे को इजाग्रस्त कर दिया। जब उन्हें लगा कि अब अंग्रेजो के हाथ पकड़े जाएंगे तब उनके हाथ पड़ने से बचने लिए अपने पर गोली चलाकर मरना उचित समझा। सीने पर गोली तो चलाई लेकिन दुर्भाग्य से बच गए और गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाकर गिरफ्तार होनेवाले वह पहले भारतीय थे। गिरफ्तारी के एक हफ्ते बाद 6 अप्रैल 1857 को, कोर्ट में 18 अप्रैल को फांसी देने की सजा सुनाई गई। उनके समर्थन में उठी जन मानस की प्रचंड आवाज़ों से अंग्रेजी हकुमत काफी डर चुकी थी। इसलिए उन्हें दस दिन पहले यानि सजा सुनाने के दो दिन बाद, 8 अप्रैल को ही फांसी दे दी। यों स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद हुए मंगल पांडे।

💐मंगल पांडे की शहादत के तुरंत बाद उत्तर भारत में स्वतंत्रता कि आवाज उठने लगी जो शीघ्र पूरे देश में फेल गई। मंगल पांडे से उठी आजादी कि चिनगारी ने आगे जाकर ऐसा रूप लिया जिसने 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी देने के लिए अंग्रेजों को मजबुर किया। 
आज, हम मंगल पांडे जी की शहादत को याद कर नमन करते हैं उन सभी देशभक्तों को जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था।

🙏शहीदों की चिताओं पर, लगेंगे हर बरस मेले..ll
वतन पे मिटने वालों का, यही बाकी निशा होगा..ll🙏

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